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Thursday 1 September 2016

बदायूं सपा मे बड़ी टूट की संभावना


- युवा वर्ग को दरकिनार कर बदरुज्जमा नकवी को टिकट देने का मामला
- सपा युवजन सभा के जिलाध्यक्ष और डा. शकील भी बताए जाते हैं नाराज
- सांसद धर्मेंद्र यादव की कार्यशौली पर लग रहे हैं सवालिया निशान

बदायूं। समाजवादी पार्टी बदरुज्जमा नकवी को शहर विधानसभा से टिकट देने जा रही है। हालांकि अभी इसकी विधिवत घोषणा नहीं हुई, सिर्फ चर्चाएं हैं। पार्टी के इस फैसले के बाद स्थानीय स्तर पर काम कर रहे जमीनी नेताओं में अंदरखाने रोष पनप रहा है। आगे ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा।जिस तरह से पार्टी हाई कमान ने बरसाती मेढ़क की तरह टिकिट मांगने वाले नेताओं को तरजीह दी उस से भी  पार्टी की छवि खराब हो रही है।और ज़मीनी कार्येकर्ता निराश है।

 समाजवादी युवजन सभा के जिलाध्यक्ष वसीम अंसारी के भाई  सपा के जिला पंचायत सदस्य,  डा. शकील अहमद भी टिकट के दावेदारों में से एक हैं। चर्चा है कि ये दोनों भाई भी अंदरखाने पार्टी के इस फैसले  से नाराज़ हैं। यह इस बात से और भी आहत बताए जाते हैं कि आबिद रजा ने सांसद पर तमाम आरोप, लगाए उस समय सबसे पहले वसीम गुट ने ही आबिद का विरोध किया और उनका पुतला भी फूंका था।लेकिन सांसद और पार्टी की कार्येशैली से सभी कार्येकर्ताओं को निराशा ही हाथ लगी।

चूंकि जिले में पिछड़े मुस्लिमों को एक बड़े वोट बैंक की नजर से देखा जाता है। वसीम गुट को आबिद रजा का धुर विरोधी माना जाता है। वसीम ने आबिद रजा की पत्नी के मुकाबले नगर पालिका का चुनाव भी लड़ा था। इस वजह से फात्मा रजा को करारी हार का सामना करना पड़ा था। इन कारणों के चलते अन्य पार्टियां भी वसीम और उनके भाई से संपर्क साधने में जुटी हैं।  डॉ. शकील मोमिन अंसार बिरादरी के जिलाध्यक्ष भी बताएं जाते हैऔर बिरादरी पर पूरे जिले में वसीम अंसारी  परिवार की अच्छी पकड़ बताई जाती है ।सच्चाई चाहे जो हो, लेकिन राजनीतिक गलियारों में इस तरह की चर्चाएं खूब हो रही हैं।

अब सपा ने रिटायर्ड जज बदरुज्जमा नकवी को टिकट देने का फैसला किया है। श्री नकवी कांग्रेस व बसपा के पूर्व प्रत्याशी फखरे अहमद शोबी के भाई हैं। इससे तमाम नेता और कार्यकर्ता खफा हैं। वजह साफ है शोबी ने कई बार चुनाव लड़ा और वह मुख्य मुकाबले में भी नहीं रहे। अब पार्टी उन पर तो दांव लगा नहीं सकती, लेकिन नकवी को टिकट दिया जा रहा है, लेकिन उन्हें भी शोबी का ही डमी कंडिडेट माना जा रहा है। इन चर्चाओं के बीच एक सुगबुगाहट यह भी है कि बदरुज्जमा को टिकट मिलने की चर्चा के बाद आबिद रजा गुट ने वसीम गुट से सुलह-समझौते की कोशिशें तेज कर दी हैं।

 युवा वर्ग को आगे बढ़ाने की सोच रखने वाली पार्टी का टिकट एक रिटायर्ड व्यक्ति को दिया जाना फिलहाल सबकी समझ से परे है। खुद सीएम अखिलेश यादव भी युवाओं को आगे बढ़ाने की बात करते हैं और उन्होंने युवा वर्ग के लिए बहुत कुछ किया भी है। युवा वर्ग को नजरअंदाज कर डमी कंडिडेट को टिकट देने पर सभी हतप्रभ हैं। बताया जाता है कि सपा के कई दिग्गज नेता भी पार्टी के फैसले के बाद संगठन से किनारा करने के मूड में हैं। यह बात दीगर है कि वे अपने पत्ते न खोलकर उचित समय का इंतजार कर रहे हैं।

अभी तक माना जा रहा था कि 2017 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम पिछड़ा वर्ग सपा के साथ रहेगा। सपा के इस फैसले के बाद अब ऐसे आसार कम ही नजर आ रहे हैं। जिले की अन्य सीटों पर भी इसका असर पड़ेगा। शेखूपुर, सहसवान, दातागंज आदि क्षेत्रों में मुस्लिम पिछड़े वोटों की संख्या काफी है। अब सांसद धर्मेंद्र यादव की पत्नी का नाम भी सामने आ रहा है। बदायूं की जनता ने धर्मेंद्र यादव को लगातार दो बार सांसद बनाया। ऐसे समय भी उनका साथ दिया जब देश भर में भाजपा की लहर थी। ऐसे में अपनी पत्नी को टिकट दिलाना उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है। इससे सांसद की कार्यशैली पर भी सवालिया निशान लग रहा है। चर्चा है कि सांसद भी शहर विधायक की राह पर चल पड़े हैं। आबिद रजा ने भी नगर पालिका मोह नहीं छोड़ा और अपनी पत्नी को चेयरमैन बनाने में कामयाब रहे।

शोबी पर भाजपा को जिताने का आरोप :


शोबी पर भाजपा को जिताने का आरोप :
इससे पहले शोबी पर भी भाजपा का डमी कंडिडेट होने के आरोप लग चुके हैं। खुद कांग्रेस नेताओं ने इस मुद्दे को हवा दी थी। शहर में चर्चा थी कि शोबी भाजपा प्रत्याशी महेश गुप्ता को जिताने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। उनका मकसद चुनाव जीतना नहीं, बल्कि मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण कराकर भाजपा को जिताना है। चुनाव बाद भाजपा विधायक महेश गुप्ता ने शोबी के खाली प्लाटों में अपनी निधि से लगभग 20 फिट चैड़ी लाखों रुपये की लागत से सड़क का निर्माण भी कराया था। कांग्रेसियों ने इस मामले को उछाला और पूर्व कांग्रेस जिलाध्यक्ष ओमकार सिंह के नेतृत्व में उस प्लाटिंग की जमीन के सामने धरना भी दिया था। बाद में यह मामला रफा-दफा करा दिया गया।

इसके अलावा इस्लामिया इंटर कालेज में भर्ती के समय सन 2011 में तमाम लोगों से घूस लेने का मामला सामने आया। यह मामला आज भी आयोग मे विचाराधीन हैं।